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Showing posts from May, 2020

लॉक डाउन व्यंजन दोहे [ भाग-2 ]

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  कोरोना के खतरे को कैसे मै टालूँ ,    आज कल खूब दबा के खा रहा हूँ आलू ।      अब तेरा क्या होगा रे कालिया ,    सरदार ! सुबह शाम खा रहा हूँ दलिया ।      लॉक डाउन मे है फास्ट फूड का टोटा ,    इसलिए घर मे ही खाता हूँ बनाके पराँठा ।      क्या बैठे बैठे हो गए हो कब्जी ,    तो सुबह शाम खाओ दबा के सब्जी ।      लॉक डाउन मे मिल नहीं रहा व्हिस्की और रम ,    बस घर बैठे खाते रहो टेस्टी आलू दम ।  बाहर से आने पर हमेशा लिया करो शावर ,    और हमेशा सुबह मे खाया करो चावल ।   चला गया छोड़ कर बजाने वाला डफली ,    नॉन वेज मे हमेशा खाया करो मछली ।  बैठे बैठे कहते है हर घर की जीजा ,    अब कभी न मँगवाना बाहर से पिज्जा ।      अगर खराब हो गया हो बैठे बैठे हाजमा ,    तो रोज बना के खाओ गरमा गरम राजमा ।      आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र है जम्मू का रजौरी ,     नाश्ते मे हमेशा खाओ खस्ता कचौरी ।  आँधी तूफान मे तिनके की तरह उड़ गए गाछ ,     रहो हमेशा चुस्त तंदुरुस्त पी के छाछ ।  क्या आपका दिमाग नहीं रहता है सही ,     तो रोज भोजन मे खाया करो छाली

लॉक डाउन व्यंजन दोहे [ भाग- 1 ]

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लॉक डाउन व्यंजन दोहे [ भाग- 1 ]   क्या तुम रोटी नहीं पाती हो सेंक ,     इसलिए ठूंस ठूंस कर खाती हो केक ।  जब घर मे छिड़ जाती है हमेशा लड़ाई ,     तो तुम हमेशा क्यों बनाती हो बिरयानी ।  क्यों मचाती रहती हो हमेशा हल्ला-गुल्ला ,     ताकि तुम शांति से ठूंस सको रसगुल्ला ।  लॉक डाउन मे घर बैठे रहने की मजबूरी ,     तो तुम क्यों नहीं बनाती हो चटपटी भेलपूरी ।  कहीं तुम बैठे बैठे न हो जाओ मोटी ,   इसलिए लॉक डाउन मे खाओ नमक रोटी ।  हमेशा हाथों को साफ करे पानी और साबुन से ,     तब जा कर पेट भरे गुलाब जामुन से ।  गरीबो बेसहारों की करो हमेशा सहायता ,    तब जा के मजा आएगा खाने मे रायता ।  अपने आस पास नहीं होने दो जल जमाव ,    क्या वाकई इतना मुश्किल है बनाना पुलाव ।  हिन्दू मुस्लिम की खाई को देना है पाट ,    अरे कभी खा के तो देखो मजेदार पापड़ी चाट।      लॉक डाउन मे डाक्टरों और पुलिसों का है जलवा ,     खुद से बनाओ और खाओ टेस्टी हलवा ।   पूरी दुनिया मिलके ले रही कोरोना से लोहा

सैंडविच

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सैंडविच पटना रेलवे स्टेशन के बाहर आज बहुत गहमा गहमी की स्थिति है। कुछ बसें खड़ी हैं , बहुत सी कारें खड़ी हैं। डॉक्टरों की टीम , प्रशासन , पुलिस सब मुस्तैद हैं। जिले के दो सबसे बड़े अधिकारी (जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान) स्वयं वहां अपने माथे पर बल लिए आगे पीछे कर रह हैं और रह रह के अपनी घड़ी की ओर देख रहे हैं। दो बड़े बड़े शामियाने लगे हुए हैं।   सभी शामियाने के अंदर बैठने के लिए बेंच एक कतार से लगी हुयी है।               तभी एक रेलगाड़ी सीटी बजाते हुए प्लेटफार्म पर लगती है। पता चलता है कि यह ट्रेन कोटा से आयी है और इसमें लॉकडाउन के कारण वहां फँस गए संभ्रांत परिवार के बच्चे बच्चियाँ हैं , जो अपने रंग बिरंगे ट्रॉली बैग के साथ उतरते हैं। डीएम और एसपी साहब तालियों और मुस्कुराहट के साथ उनका स्वागत करते हैं। एक एक कर उन बच्चों को उस शामियाने में ले जाया जाता है जहां उनके स्वागत के लिए बिस्कुट , केला , सेब , पपीता , सैंडविच , जूस , पानी के बोतल इत्यादि है।                कुछ देर बाद ही एक और रेलगाड़ी सीटी बजाते हुए प्लेटफार्म पर पहुँचती है। पता चलता है कि ये ट्रेन मुम्बई के लोकम

माँ

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माँ एक ही शब्द काफी है परिभाषित करने के लिए , पुत्र का प्यार ही है उसे सुशोभित करने के लिए ।    बिन कहे ही समझ जाती वो दिल की हर बात , अपने आँचल मे वो कर लेती सबको आत्मसात । जिसकी वंदना करे सृष्टि के ब्रम्हा विष्णु महेश , वो कैसे कर सकती है घर मे कोई क्लेश । उसके बिना लगे घर आँगन हमेशा सूना , उसके होने से ही खुशियाँ हो जाती दूना । हमेशा रक्षा करती उसकी दुआएँ बन मजबूत ढाल , जब भी कोई बलाएँ हो पड़ती आन । हर मुश्किल का हँस कर लेती सामना , ना कभी रखे वो मन मे कोई दुर्भावना । जिसका संबल ही हो पुत्र का आधार , जिसके संस्कार , चरित्र और हो उच्च विचार । उस देवी को करता हूँ नमन बारंबार , उसके चरणों मे अर्पित धवल पुष्पहार ।   © तरुण आनंद 

प्रकृति का संदेश

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प्रकृति का संदेश पूरी पृथ्वी स्थिर है, क्या अजीब मंजर है, प्रकृति भी पूरे रौ में चुभो रही खंजर है । कैसा यह विनाश का हो रहा तांडव है, रास्ते वीरान, पशु-पक्षी हैरान, जमीन भी अब बंजर है । आज सब कैद हैं अपने ही बनाए मकानों में, कितनी महँगी है ज़िंदगी, यह मिलती नहीं दुकानों में । ये कैसी छाई वीरानी है और कैसी है ये मदहोशी, सबके चेहरे सुर्ख है और पसरी है अजीब सी खामोशी । कल तक सारे लोग जो मौज में थे, पता नहीं ! क्यों आज वही सब खौफ में है । क्या शूल बनके चुभ रही है हवा, या प्रकृति दे रही है हम सभी को सजा । समस्त मानव जाति है तबाह और परेशान, आज सबकी पड़ गयी है संकट में जान । जितनी निर्ममता से किया था दोहन प्रकृति का, उतनी ही जल्दी संदेशा आया विपत्ति का । यही तो वक़्त है संभलने का, कदम मिला कर प्रकृति संग चलने का । शांत बैठो, धैर्य रखो, बिगड़े को सुधरने दो, वक़्त दो, साथ दो, प्रकृति को फिर से सँवरने दो । हरियाली का मान रखो, स्वयं को इंसान बना डालो, स्वच्छता का हाथ थाम, बीमारी को मिटा