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अनमोल रिश्ता

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                     जिस दिन का बेसब्री से रहता हर प्यारी बहना को इंतजार , उस दिन को हम कहते है रक्षा बंधन का त्योहार ।   कभी लड़ाई तो कभी मनुहार भाई बहन का ऐसा ही प्यार, इस रिश्ते का ना कोई मोल   ऐसा ही है राखी का त्योहार । माँ बनाती पुए पकवान भाई आज बना शैतान, बहना राखी बांधने को    है सुबह से ही परेशान ।  रेशम के इस धागे मे बसा है प्यारी बहना का दुलार, ये पवित्र रिश्ता है ऐसा मिट जाए लम्हो का एहसास । जिसकी नहीं है कोई बहना सारा जीवन है उसे दुख सहना, कमी ऐसी खलती है उसे की जैसे कम हो अपना एक गहना ।

चुभन

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चुभन पुरानी साड़ियों के बदले बर्तनों के लिए मोल भाव करती सम्पन्न घर की महिला ने अंततः दो साड़ियों के बदले एक टब पसंद किया । "नही दीदी , बदले में तीन साड़ियों से कम तो नही लूँगा ।" बर्तन वाले ने टब को वापस अपने हाथ में लेते हुए कहा । "अरे भैया , एक एक बार की पहनी हुई तो हैं....... बिल्कुल नयी जैसी । एक टब के बदले में तो ये दो भी ज्यादा हैं ,   मैं तो फिर भी दे रही हूँ। "नही नही , तीन से कम में तो नही हो पायेगा " वह फिर बोला। एक दूसरे को अपनी पसंद के सौदे पर मनाने की इस प्रक्रिया के दौरान गृह स्वामिनी को घर के खुले दरवाजे पर देखकर सहसा गली से गुजरती एक अर्द्ध विक्षिप्त महिला ने वहाँ आकर खाना माँगा...। आदतन हिकारत से उठी महिला की नजरें उस महिला के कपड़ो पर गयी....। अलग अलग कतरनों को गाँठ बाँध कर बनायी गयी उसकी साड़ी उसके युवा शरीर को ढँकने का असफल प्रयास कर रही थी...। एकबारगी उसने मुँह बिचकाया पर सुबह सुबह का याचक है सोचकर अंदर से रात की बची रोटियां मंगवायी । उसे रोटी देकर पलटते हुए उसने बर्तन वाले से कहा "तो भैय्या क्या सोचा ? दो साड़िय

भारतीय रेल को समर्पित

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भारतीय रेल को समर्पित रुकी वो इसलिए की प्राण बच जाए, चली भी वो इसलिए की प्राण बच जाए । बनाया खुद को अस्पताल, क्योंकि जिंदगी का सवाल बच जाए । बच्चों को लेकर चली, की नई पीढ़ी का नौजवान बच जाए । चली मज़दूरों को लेकर, की पसीने का मान बच जाए । दौड़ेगी जल्द ही देश की धड़कन, फिक्र सिर्फ इतनी की अपना हिंदुस्तान बच जाए । जय हिन्द, जय भारतीय रेल ।

ज़िंदगी का अग्निपथ

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ज़िंदगी का अग्निपथ   आग सा धधकता , शूल सा चुभता , था खौफ का मंजर , रास्ते सभी बने खंजर                यही तो है ज़िंदगी का अग्निपथ । जिस पर है हरेक को चलना , पार उसके निकलना , कभी डूबना तो कभी तैरना                कर तू शपथ , ज़िंदगी का अग्निपथ ।। वो चलते रहे , थकते रहे , थमते रहे , गिरते रहे और गिर कर                फिर से संभलते भी रहे । उन्हे क्या पता था की ये ज़िंदगी है अग्निपथ , जिस पर पाँव मे उनके                शूल चुभते भी रहे ।। मगर जिद थी ज़िंदगी जीने की , चाह थी घर लौटने की , अपने लिए नहीं बल्कि उनके लिए ,                जो थे उनके इंतजार में पलकों को बिछाए । ना जाने कितने गम सहे , ना जाने कितनी रातें भूखे रहे , सर्द मौसम मे , गर्म हवाओं के बीच                जो बेहिसाब दर्द को थे अपने दिल मे छुपाए ।। मीलों की दूरियों को अपने आँसुओ से नापा , हौसलों की बारिश से प्यास को बुझाया                निरंतर चलते हुये पड़ गए पाँव मे छाले । फिर भी इस अग्निपथ पे , ना कभी वो झुके , ना कभी वो रुके , बस हर विघ्न को      

लॉक डाउन व्यंजन दोहे [ भाग-2 ]

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  कोरोना के खतरे को कैसे मै टालूँ ,    आज कल खूब दबा के खा रहा हूँ आलू ।      अब तेरा क्या होगा रे कालिया ,    सरदार ! सुबह शाम खा रहा हूँ दलिया ।      लॉक डाउन मे है फास्ट फूड का टोटा ,    इसलिए घर मे ही खाता हूँ बनाके पराँठा ।      क्या बैठे बैठे हो गए हो कब्जी ,    तो सुबह शाम खाओ दबा के सब्जी ।      लॉक डाउन मे मिल नहीं रहा व्हिस्की और रम ,    बस घर बैठे खाते रहो टेस्टी आलू दम ।  बाहर से आने पर हमेशा लिया करो शावर ,    और हमेशा सुबह मे खाया करो चावल ।   चला गया छोड़ कर बजाने वाला डफली ,    नॉन वेज मे हमेशा खाया करो मछली ।  बैठे बैठे कहते है हर घर की जीजा ,    अब कभी न मँगवाना बाहर से पिज्जा ।      अगर खराब हो गया हो बैठे बैठे हाजमा ,    तो रोज बना के खाओ गरमा गरम राजमा ।      आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र है जम्मू का रजौरी ,     नाश्ते मे हमेशा खाओ खस्ता कचौरी ।  आँधी तूफान मे तिनके की तरह उड़ गए गाछ ,     रहो हमेशा चुस्त तंदुरुस्त पी के छाछ ।  क्या आपका दिमाग नहीं रहता है सही ,     तो रोज भोजन मे खाया करो छाली

लॉक डाउन व्यंजन दोहे [ भाग- 1 ]

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लॉक डाउन व्यंजन दोहे [ भाग- 1 ]   क्या तुम रोटी नहीं पाती हो सेंक ,     इसलिए ठूंस ठूंस कर खाती हो केक ।  जब घर मे छिड़ जाती है हमेशा लड़ाई ,     तो तुम हमेशा क्यों बनाती हो बिरयानी ।  क्यों मचाती रहती हो हमेशा हल्ला-गुल्ला ,     ताकि तुम शांति से ठूंस सको रसगुल्ला ।  लॉक डाउन मे घर बैठे रहने की मजबूरी ,     तो तुम क्यों नहीं बनाती हो चटपटी भेलपूरी ।  कहीं तुम बैठे बैठे न हो जाओ मोटी ,   इसलिए लॉक डाउन मे खाओ नमक रोटी ।  हमेशा हाथों को साफ करे पानी और साबुन से ,     तब जा कर पेट भरे गुलाब जामुन से ।  गरीबो बेसहारों की करो हमेशा सहायता ,    तब जा के मजा आएगा खाने मे रायता ।  अपने आस पास नहीं होने दो जल जमाव ,    क्या वाकई इतना मुश्किल है बनाना पुलाव ।  हिन्दू मुस्लिम की खाई को देना है पाट ,    अरे कभी खा के तो देखो मजेदार पापड़ी चाट।      लॉक डाउन मे डाक्टरों और पुलिसों का है जलवा ,     खुद से बनाओ और खाओ टेस्टी हलवा ।   पूरी दुनिया मिलके ले रही कोरोना से लोहा

सैंडविच

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सैंडविच पटना रेलवे स्टेशन के बाहर आज बहुत गहमा गहमी की स्थिति है। कुछ बसें खड़ी हैं , बहुत सी कारें खड़ी हैं। डॉक्टरों की टीम , प्रशासन , पुलिस सब मुस्तैद हैं। जिले के दो सबसे बड़े अधिकारी (जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान) स्वयं वहां अपने माथे पर बल लिए आगे पीछे कर रह हैं और रह रह के अपनी घड़ी की ओर देख रहे हैं। दो बड़े बड़े शामियाने लगे हुए हैं।   सभी शामियाने के अंदर बैठने के लिए बेंच एक कतार से लगी हुयी है।               तभी एक रेलगाड़ी सीटी बजाते हुए प्लेटफार्म पर लगती है। पता चलता है कि यह ट्रेन कोटा से आयी है और इसमें लॉकडाउन के कारण वहां फँस गए संभ्रांत परिवार के बच्चे बच्चियाँ हैं , जो अपने रंग बिरंगे ट्रॉली बैग के साथ उतरते हैं। डीएम और एसपी साहब तालियों और मुस्कुराहट के साथ उनका स्वागत करते हैं। एक एक कर उन बच्चों को उस शामियाने में ले जाया जाता है जहां उनके स्वागत के लिए बिस्कुट , केला , सेब , पपीता , सैंडविच , जूस , पानी के बोतल इत्यादि है।                कुछ देर बाद ही एक और रेलगाड़ी सीटी बजाते हुए प्लेटफार्म पर पहुँचती है। पता चलता है कि ये ट्रेन मुम्बई के लोकम