ज़िंदगी का अग्निपथ

ज़िंदगी का अग्निपथ आग सा धधकता , शूल सा चुभता , था खौफ का मंजर , रास्ते सभी बने खंजर यही तो है ज़िंदगी का अग्निपथ । जिस पर है हरेक को चलना , पार उसके निकलना , कभी डूबना तो कभी तैरना कर तू शपथ , ज़िंदगी का अग्निपथ ।। वो चलते रहे , थकते रहे , थमते रहे , गिरते रहे और गिर कर फिर से संभलते भी रहे । उन्हे क्या पता था की ये ज़िंदगी है अग्निपथ , जिस पर पाँव मे उनके शूल चुभते भी रहे ।। मगर जिद थी ज़िंदगी जीने की , चाह थी घर लौटने की , अपने लिए नहीं बल्कि उनके लिए , जो थे उनके इंतजार में पलकों को बिछाए । ना जाने कितने गम सह...